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वर-वधु कुन्डलीमिलन        

विषय विशेषज्ञ द्वारा वर व वधु की जन्मपत्रिका बना कर लग्न कुंडली, सर्वतोभद्र, षोडशवर्ग एवं वर्ष गणित के अनुसार अलग - अलग पद्धति से विभिन्न विषयों पर अध्ययन करना कुंडली मिलान कहलाता है।


अनेकों स्थिति में देखा गया है, कुंडली मिलान सही नहीं होने पर भी दोनों पक्ष विवाह के लिए राजी रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में आगामी संभावित समस्याओं की जानकारी से किसी भी अप्रिय घटना के लिए मानसिक रूप से तैयार रहा जा सकता है।

इसमें मुख्यतः निम्न विषय की जानकारी दी जाती है।

(1) द्वि - विवाह योग - इसमें यह देखा जाता कि वर या वधु किसी की जन्मपत्रिका में दो विवाह के योग तो नहीं है। यदि किसी एक की जन्मपत्रिका में इस प्रकार का योग पाया जाता है तो दूसरे पक्ष को भी इसी प्रकार की समस्या से जूझना पड़ता है। दूसरे पक्ष के लिए अनावश्यक बहुत बड़ी मानसिक, आर्थिक, सामाजिक हानि का सामना करना पड़ता है। अतः इसका अध्ययन करना अति आवश्यक है।  शास्त्रों में ऐसी स्थिति पाये जाने पर उपाय (समाधान) भी बताया गया है। विवाह पूर्व समाधान करने से अलग होने की सम्भावना "ना" के बराबर होती है।

(2) आयु विचार - दोनों पक्षों की संभावित आयु वर्ष गणना करना तथा अल्प आयु होने की स्थिति में समाधान विचार करना। इसके लिए जैमिनी पद्धति का उपयोग किया जाता है।

(3) मानसिक / सामाजिक जुड़ाव - चंद्र , सूर्य एवं नवमांश के अध्ययन से दोनों ही पक्षों के एक दूसरे के ससुराल से सम्बन्ध एवं एक दूसरे से जुड़ाव संबधित जानकारी प्राप्त होती है।

(4) वैराग्य योग - ऐसा योग होने पर इंसान सामाजिक या पारिवारिक दबाव में विवाह तो कर लेता है परन्तु उसकी गृहस्थ जीवन में कोई रूचि नहीं होती।  इस प्रकार की स्थिति में दोनों ही पक्षों को मानसिक पीड़ा उठानी पड़ती है तथा दोनों ही पक्षों का जीवन कष्टमय रहता है। कुंडली में छठे, सांतवें, आठवें तथा सांतवें स्थान के स्वामी एवं दॄष्टि से इस बात की जानकारी मिलती है।

(5) संतान - वर व वधु की जन्मपत्रिका के अध्ययन से संतान सम्बन्धी जानकारी मिलती है। यदि दोनों में से किसी भी पक्ष में किसी प्रकार की ज्योतिषीय दॄष्टि से शारीरिक कमी की सम्भावना की जानकारी मिलती है तो उसे मेडिकल टेस्ट करवा कर कन्फर्म किया जा सकता है।

कुछ अन्य ज्योतिषीय दॄष्टि से विचारणीय बातें -

(1) यदि वर - वधु किसी की भी जन्म लग्न कुंडली में सातवें भाव में राहु / केतु / शनि हों तो पारिवारिक जीवन सदैव तनावपूर्ण रहते हैं।


(2) सांतवें स्थान का स्वामी अपने स्थान से चौथे, आठवें या बारहवें घर में विराजित हो तो गृहस्थ जीवन कभी भी सुखद नहीं रहता।


(3) चन्द्रमा का ग्रहण योग द्विविवाह की सम्भावना बनाता है। सांतवें भाव में शनि या  शनि व चन्द्रमा का साथ होना या एक दूसरे से दॄष्टि सम्बन्ध वैराग्य योग बनाते हैं। ऐसी स्थिति में विवाह में विलम्ब भी संभव है।


(4) प्रेम विवाह / सामाजिक रीती रिवाज से विवाह होने के स्पष्ट संकेत मिलते हैं। दोनों पक्षों के चंद्र कुंडली में चतुर्थ, दशम भाव के ग्रहों द्वारा सास - ससुर के व्यवहार को देखा जा सकता है।


(5) संतान विचार के लिए वर - वधु के शुक्र ग्रह का विंशोपक बल एवं षटबल एवं स्थान का अध्ययन करते हैं। इसके साथ ही सांतवें भाव एवं वृश्चिक राशि का भी अध्ययन किया जाता है। छठे भाव से शारीरिक कमजोरी की जानकारी मिलती है। संतान के लिए वधु की जन्मपत्रिका में मंगल, शुक्र एवं शनि के बलाबल का अध्ययन किया जाता है।

वर-वधु कुन्डलीमिलन मुल्य

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